हमारा यह पोस्ट ‘100+ Best Kabir Das Quotes in Hindi, कबीर जी के दोहे‘ कबीरदास जी के प्रसिद्ध दोहे, कबीरदास जी के कोट्स और कबीरदास जी के विचार के संग्रह का संकलन है।
कबीर दास जी के प्रेरणादायक उद्धरण और दोहे आपके जीवन को सकारात्मक दिशा देने में सहायक हो सकते हैं। हमने इस लेख में संत कबीर के अनमोल विचार जो सत्य, भक्ति, प्रेम और जीवन के गहरे अर्थों को सरल भाषा में व्यक्त करते हैं, को संगृहीत करने का प्रयास किया है। कबीर के दोहों की गहराई और उनमें छिपा ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था। तो इस लेख को पूरा पढ़िए और जानिए कैसे कबीर के शब्द आपके सोचने के तरीके को बदल सकते हैं और आत्मिक शांति प्रदान कर सकते हैं।
Kabir Das Quotes in Hindi
कुछ बेहतरीन Kabir Das Quotes in Hindi का संग्रह आप यहां नीचे पढ़ेंगे-
“दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि इस संसार में मनुष्य का जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है। यह मानव जन्म उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाये तो दोबारा डाल पर नहीं लगता। अर्थात कबीरदास जी कहते है कि 84 लाख योनि में जन्म लेने के बाद एक बार मानव जन्म मिलता है और यही योनि ऐसी है जिसमे आप ईश्वर की प्राप्ति करके इस सांसारिक माया मोह की बंधनों से मुक्त हो सकते हो। इसे व्यर्थ मत गवाओ, अन्यथा आपको फिर मनुष्य शरीर फिर 84 लाख योनि में जन्म लेने के बाद मिलेगा और जन्म मरण के बंधनों में फसकर रह जायेंगे।

“माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर, आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि न कभी इंसान का मोह माया ख़त्म हुआ न कभी मन। इन्सान मरता है, बार- बार शरीर बदलता है, लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती है।
“दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि दुःख के समय भगवान् को सब याद करते है, लेकिन सुख के समय कोई याद नहीं करता। अगर तुम सुख में भगवान् को याद करते तो दुःख कभी आता ही नहीं।
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि काम को कभी भी मत टालो, जो काम कल करना है उसे आज करो और जो काम आज करना है उसे अभी करो। इस जीवन का किसी को पता नहीं की पल में क्या हो जाये, अगर अगले ही पल जीवन का अंत हो जाये तो जो तुम्हे करना है उसे कब करोगे।
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, कहे कबीर हरि पाइये, मन ही की परतीत।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि अगर आप मन में ही अपनी हार मान लेते है तो आपकी हार निश्चित है और अगर आप मन में अपनी जीत मान के चलते है तो आपकी जीत सुनिश्चित है। ठीक उसी प्रकार अगर आपके मन में आस्था है, आपके अंदर विश्वास है, तभी आप ईश्वर की प्राप्ति कर सकते है। अगर आपके अंदर विश्वास नहीं है तो आप ईश्वर की प्राप्ति कभी नहीं कर सकते।
“गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।” – कबीरदास
अर्थ – इस दोहे में कबीरदास गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि अगर कभी गुरु और गोविन्द (भगवान्) दोनों एकसाथ खड़े हो और आप इस दुविधा में फंसे हो कि सबसे पहले किसका चरण स्पर्श करू तो ऐसी परिस्थिति में सबसे पहले गुरु का चरण स्पर्श करना चाहिए, क्यूकि गुरु के माध्यम से हम भगवान् को प्राप्त करते है, इसलिए गुरु का स्थान भगवान से हमेशा ऊपर होता है।

“कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूढ़त बन माहि, ऐसे घट घट राम है, दुनिया देखत नाहि।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह कहना चाहते है कि कस्तूरी (एक सुगन्धित पदार्थ) हिरण के नाभि में ही होता है, लेकिन इससे अनभिज्ञ वह हिरण इसके सुगंध से आकर्षित होकर कस्तूरी को पाने के लिए पुरे जंगल में इधर उधर भटकता है लेकिन इसे प्राप्त नहीं कर पाता। उसी प्रकार भगवान सभी के अंदर निवास करते है, लेकिन मनुष्य उन्हें पाने के लिए तीर्थ स्थानों, मंदिरो में भटकता है।
कबीरदास जी कहना चाहते है कि हर जगह भगवांन के तलाश में भटकने से अच्छा है कि सच्चे दिल से अपनी अंतरात्मा में भगवान् को तलाश करे, वह आपको जरूर मिलेगा।
“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर।।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुमने माला फेरते-फेरते युगो बीता दिया लेकिन तुम्हारे मन का कपट, लोभ कभी दूर नहीं हुआ। अब तुम हाथ का मनका (माला) फेरना छोड़ दो और अपने मन रूपी मनके को फेरो अर्थात अपने मन को सुधारो, देखना तुम्हारा अपने मन पर नियंत्रण होगा और मन से सारी विकारे दूर हो जाएगी।
“चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाये। वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।”– कबीरदास
अर्थ – संत कबीर जी कहते हैं कि चिंता वह अदृश्य डाकिनी है जो मनुष्य के हृदय को धीरे धीरे आघात पहुँचाती है। यह घाव किसी को दिखाई नहीं देता है। यहाँ तक की विश्व का कोई भी वैद्य कितना भी मरहम, दवा लगा ले, इसका इलाज नहीं कर सकता।
कबीरदास जी का कहना है कि चिंता को त्याग दे। चिंता करने से अपना ही नुक्सान होता है इसलिए चिंता को छोड़कर सार्थक चिंतन करें। चिंता करने से शरीर और बुद्धि का नाश होता है और सकारात्मक चिंतन करने से मस्तिष्क और बुद्धि का विकास होता है।
Sant Kabir Quotes in Hindi
“जब मै था तब हरी नाही, अब हरी है मै नाही, सब अधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे में कहते है कि जब मेरे अंदर अहंकार था, तब मेरे ह्रदय में भगवान् नहीं थे। अब मेरे ह्रदय में भगवान् का वास है तो मेरे अंदर का अहंकार ख़त्म हो गया। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार ख़त्म हो गया है।

“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि मनुष्य का यह शरीर विष से भरा हुआ है और गुरु ज्ञान रूपी अमृत का भण्डार है। अगर आपको अपना शीश (सिर) देने के बदले में कोई सच्चा गुरु मिले तब भी यह सौदा बहुत ही सस्ता होगा।
“आछे दिन पाछे गए, हरी से किया ना हेत, अब पछतायें होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जब तुम्हारा समय अच्छा चल रहा था, तब तुमने प्रभु को प्राप्त करने के बारे में नहीं सोचा। प्रभु ही तुमको बार बार जन्म मृत्यु के बंधनो से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करते। लेकिन अब पछताने से कोई फायदा नहीं, जिस प्रकार खेत के रखवाली न करने के वजह से, चिड़ियो द्वारा बीज को चुग जाने के बाद, किसान का बाद में पछताना बिलकुल व्यर्थ है।
पछताने से फसल वापस उग नहीं सकती। उसी प्रकार समय बीत जाने के बाद मनुष्य का बाद में पश्चाताप करना व्यर्थ है।
“दुर्बल को न सताइये, जाकि मोटी हाय। बिना जीव की साँस सो, लौह भस्म हो जाय।।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि कमजोर या लाचार इंसान को कभी सताना नहीं चाहिए, क्युकि इनकी हाय बहुत बड़ी होती है। जैसे बिना जीव की धौकनी (आग को हवा देने के लिए प्रयोग होने वाला पंखा) भी देखने में भले में भले ही छोटी लगती है लेकिन यह मजबूत से मजबूत लोहे को भी पिघला देती है।
“जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय। मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय।।” – कबीरदास
अर्थ – इस दोहे में कबीरदास जी कहते है कि जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो। मरने से पहले ही जो मर लेता है, वह अजय और अमर हो जाता है अर्थात समय रहते ही जो अपने अंदर के अज्ञान, अहंकार, वासना से खुद को मुक्त कर लेता है, वही जीवन मृत्यु के बंधनो से मुक्त हो पाता है।
Kabir Quotes in Hindi
कबीरदास जी के बेस्ट कोट्स जो दोहे के रूप में है, निम्नलिखित है:
“पानी केरा बुदबुदा, अस मानष की जात, देखत ही छुप जायेगा, ज्यों सारा परभात।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है जिस प्रकार पानी के बुलबुला क्षण भर में बनता है और क्षण भर में समाप्त हो जाता है, मनुष्य का शरीर भी उसी भांति क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होने पर सारे तारे छिप जाते है, वैसे ही हमारा शरीर भी एक दिन नष्ट हो जायेगा।

“काम बिगाड़े भक्ति को, क्रोध बिगाड़े ज्ञान, लोभ बिगाड़े त्याग को, मोह बिगाड़े ध्यान।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी के अनुसार काम, क्रोध, लोभ, और मोह मनुष्य के प्रधान शत्रु है। हमे सदैव इनसे बचकर रहना चाहिए। काम हमारी भक्ति को नष्ट करता है। लोभ हमारे ज्ञान को नष्ट करता है, लोभ हमारे संतोष को नष्ट करता है और मोह हमारे ध्यान को नष्ट करती है।
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान। जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण।। – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जिस इंसान के ह्रदय में दूसरो के लिए प्रेम नहीं है, वह मरे हुए के समान है। जिस प्रकार लोहार की धौंकनी निर्जीव होकर भी सांस लेती है, वैसे ही प्रेम से हीन मनुष्य भी सांस लेता है, लेकिन वह मरे हुए के समान ही है।
“तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय। कबहूँ उड़ आँखों मे पड़े, पीर घनेरी होय।।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि तिनके को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए चाहे वो आपके पाँव तले हीं क्यूँ न हो, क्यूंकि यदि वह उड़कर आपकी आँखों में चला जाए तो बहुत तकलीफ देता है।
“तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय। सहजे सब विधि पाइये, जो मन जोगी होय।।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि शरीर पर भगवा वस्त्र धारण करना बहुत सरल है, लेकिन मन को योगी बहुत कम ही लोग बनाते है। यदि मन को योगी बना लिया जाये तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती है अर्थात केवल भगवा वस्त्र धारण करने से लोग सिद्धि प्राप्त करने की चेष्टा करते है, लेकिन योगी बनने के लिए अपने मन को शुद्ध करने की जरुरत होती है।
“जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए। यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए।।” – कबीरदास
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि अगर आपका मन शांत है तो संसार में कोई आपका शत्रु नहीं हो सकता। यदि आपने अपने अंदर का सारा अहंकार ख़त्म कर दिया तो सभी आपसे प्रेम करने लगेंगे।
Sant Kabir Das Ke Dohe (कबीर जी के दोहे)
कुछ बेस्ट कबीरदास जी के दोहे (Sant Kabir Das Ke Dohe) हमने नीचे लिखा है:
दोहा – 1
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होये।।
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे में कहते है कि हमे बोलते वक्त अपना आप नहीं खोना चाहिए। हमें हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए, जिसे सुनकर सभी अपने अंदर सुख और शीतलता का अनुभव करे और आपके मन में शांति लाये।

दोहा – 2
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है आप कितने भी बड़े आदमी बन जाइये, जरूरतमंदो की मदद करना आपका परम धर्म होना चाहिए, नहीं तो आपके बड़े होने का कोई अभिप्राय नहीं है, ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार खजूर का पेड़ तो बहुत लम्बा हो जाता है, पर वह किसी पथिक को छाया नहीं देता और उसपे फल भी बहुत दूर लगते है।
दोहा – 3
उठा बगुला प्रेम का, तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला, तिन का तिन के पास।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जब मन में प्रेम जागृत हो जाता है, तो मनुष्य की सभी कामनाएं खत्म हो जाती है और आत्मा परमात्मा में जाकर मिल जाती है। जब तक आत्मा का मन से संयोग होता है, तब तक आत्मा सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए शरीर के साथ रहती है, लेकिन जब हृदय में सभी के लिए प्रेम अर्थात ईश्वर के लिए प्रेम जागृत हो जाता है तो आत्मा सांसारिक मायामोह से ऊपर उठकर उस ईश्वर में मिल जाती है।
सन्देश:
कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह कहना चाहते है कि अगर आप जीवन में मोक्ष की प्राप्ति करना चाहते है तो सबसे प्रेम करे। प्रेम ही एकमात्र ऐसा साधन है जिससे आप इस माया मोह रूपी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकते है।
दोहा – 4
बुरा जो देखन, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा अपना, मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थ – कबीरदास कहते है कि जब मै बुरे मनुष्य को खोने निकला तो मुझे कोई भी बुरा मनुष्य नहीं मिला। जब मैंने अपने अंदर झांक कर देखा, तब लगा अपने से बुरा कोई नहीं है अर्थात बुराई हमारे ही अंदर होती है और हमें सारी दुनिया ही बुरी दिखाई देती है।
दोहा – 5
सात समंदर की मसि करौं, लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं, हरि गुण लिखा न जाई।।
अर्थ – इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु की महिमा का वर्णन किया है। कबीरदास जी कहते है कि अगर पूरी पृथ्वी को कागज बना लिया जाए, समस्त जंगलो की लकड़ियों का कलम बना लिया जाए और सातो महासागरों की पानी को स्याही बना लिया जाए तो भी गुरु के गुणों का वर्णन नही किया जा सकता।
अर्थात गुरु के महत्व का वर्णन करना असंभव है, गुरु ही एक ऐसे है, जिनके माध्यम से हम इस जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते है।
दोहा – 6
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है सिर्फ किताबे पढ़ लेने से कोई सच्चे ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकता। जिस मनुष्य के अंदर प्रेम है, सिर्फ वही परम सत्य को प्राप्त कर सकता है।
दोहा – 7
प्रीत न कीजे पंछी जैसी, जल सूखे उड़ जाय।
प्रीत तो कीजे मछली जैसी, जल सूखे मर जाय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि प्रेम (गुरु से प्रेम) कभी पंछी की तरह मत करिए, जो जब तक पानी रहता है, तब तक रहता है, जैसे ही पानी सूख जाता है तो वो उड़ कर कही और चला जाता है। प्रेम करना है तो मछली की तरह करिए, जो तब तक रहता है जब तक पानी रहता है लेकिन जैसे ही पानी खत्म हो जाता है वो भी मर जाता है।

दोहा – 8
“मालिन आवत देख के, कलियन करे पुकार।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार।।”
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि माली को बगीचे में अपनी ओर आते देखकर सभी कलियां आपस में बात करती है कि माली ने धीरे धीरे करके सारे फूलों को तोड़ लिया, अब कल हमारी बारी आएगी। इस दोहे के माध्यम से कबीरदास हम सबको समझाना चाहते है कि यह शरीर भंगुर है, आप भले ही आज जवान है लेकिन एक दिन आप भी बूढ़े होंगे और यह शरीर एक दिन मिटटी में मिल जायेगा इसलिए इस शरीर पर घमंड न करो।
दोहा – 9
जब मन लागा लोभ सो, गया विषय में भोय।
कहै कबीर बिचारि के, केहि प्रकार धन होय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जब तक हमारा मन लोभ लालच में डूबा रहता है, हम भोग वासना में डूबते जाते है। कबीरदास जी अपना विचार हमे बताते है कि जब तक हमारे मन में लोभ लालच भरा रहता है तब तक हम धन को प्राप्त ही नहीं कर सकते है।
दोहा – 10
अजहुँ तेरा सब मिटै, जो जग मानै हार।
घर में झजरा होत है, सो घर डारौ जार।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि आज ही तेरा सब संकट मिट सकता है, जो तू इस माया रूपी संसार से हार मानकर पीछे हट जा और तेरे अंधकार रूपी घर अर्थात मन में जो काम, क्रोध और लोभ का झगड़ा चल रहा है, उसे अपने ज्ञान के प्रकाश से मिटा दे।
Kabir Ke Dohe in hindi
कबीरदास जी के दोहे निम्नलिखित है जो आपको सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे:
दोहा – 11
इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले मिले सकल रास रीति।
कहै कबीर तहँ जाइये, यह संतन की प्रीति।।
अर्थ – कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ इस प्रकार है-
“कबीर कहते हैं कि जहाँ प्रिय (ईश्वर) मिल जाए और मन को भी संतोष मिले, और जहाँ सब प्रकार के रस (आनंद) और रीति (प्रेम-भाव) भी प्राप्त हों, ऐसे स्थान पर ही जाना चाहिए, क्योंकि वहाँ संतों की सच्ची प्रीति (प्रेम) होती है।”
सन्देश:
इस दोहे के माध्यम से संत कबीर कहते हैं कि जहाँ आत्मिक शांति, सच्चा प्रेम और परमात्मा की प्राप्ति हो, वही स्थान सर्वोत्तम है और वह संतों की संगति में ही संभव है।
दोहा – 12
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करे सब कोय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जब आपका मन शीतलता से भरा हो तब आपका कोई दुश्मन हो ही नहीं सकता। अगर इंसान अपने अंदर के अहंकार को मिटा दे तो उसपे हर कोई दया करने को तैयार हो जाता है।

दोहा – 13
साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधु नाहीं।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि सच्चा साधु (सज्जन पुरुष) हमेशा मन के भाव का भूखा होता है, वह धन का लोभी नहीं होता है और जो धन के लोभ में फिरता रहता है वह कभी भी सच्चा साधु नहीं हो सकता।
दोहा – 14
सत्सगति के सूप ज्यों, त्यागै फटकि असार।
कहै कबीर गुरु नाम ले, परसै नहीं विकार।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि सत्संग (सज्जन लोगो की संगति) सूप की तरह होती है जो फटककर बेकार की चीजों को अलग कर देता है। कबीरदास जी कहते है कि जो इंसान गुरु का नाम लेता है और सज्जन लोगो की संगति में रहता है, वह किसी भी दोष विकार से प्रभावित नहीं होती है।
दोहा – 15
कबीर मिरतक देखकर, मति धरौ विश्वास।
साधु तहाँ लौं भय करे, जौ लौं पिंजर साँस।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि अगर मन शांत हो तो ऐसा मत सोचिये कि वह कभी धोखा नहीं देगा। लेकिन मन तो चंचल होता है इसलिए विवेकी लोग सांसे चलने तक मन में भय रखते है।
Kabir Dohe
कबीरदास जी के सच्चे ज्ञान आधारित दोहे निम्नलिखित है;
दोहा – 16
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जनम अमोल सा, कोड़ी बदली जाय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि इंसान अपने जीवन को बहुत ही लापरवाही से बर्बाद कर रहा है। वह रातों को सोकर और दिन को सिर्फ खाने-पीने में ही निकाल देता है, जबकि उसका जीवन हीरे के समान बेहद मूल्यवान है। लेकिन वह इस अमूल्य जीवन को व्यर्थ के कामों में गवां देता है, जैसे कोई व्यक्ति हीरे को कौड़ियों के बदले बेच दे।
यह दोहा हमें जीवन के महत्व को समझाने और उसे सार्थक रूप से जीने की प्रेरणा देता है।
दोहा – 17
“जिन घर साधु न पूजिये, घर की सेवा नाहीं।
ते घर मरघट जानिये, भुत बसै तिन माहीं।।
अर्थ – इस दोहे का हिन्दी में अर्थ है:
“जिन घरों में साधु-संतों की पूजा नहीं होती और उनका आदर-सत्कार नही किया जाता है,
ऐसा घर श्मशान (मरघट) के समान होता है, क्योंकि ऐसे घरों में भूत-प्रेत निवास करते हैं।”
विस्तार से अर्थ:
इस दोहे में कबीर दास जी ने यह समझाया है कि अगर किसी घर में साधु-संतों का सम्मान नहीं होता, वहाँ धर्म, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का अभाव होता है। कबीर जी कहते है ऐसे घर “मरघट” यानी श्मशान की समान है—जहाँ जीवन नहीं, केवल मृत्यु का वास होता है। यहाँ भूत-प्रेत शब्द का मतलब नकारात्मक शक्तियों और अशांति से हैं।
सीख:
साधु-संत केवल सामान्य व्यक्ति है, बल्कि वे आध्यात्मिक ज्ञान, शांति, और सकारात्मकता के प्रतीक हैं। उनके प्रति सम्मान रखने से घर में सुख-शांति और शुभता बनी रहती है।
दोहा – 18
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।
अर्थ – जो आपकी निंदा (बुराई) करता है, उसे अपने पास ही रखना चाहिए, यहाँ तक कि अपने आँगन में उसकी एक छोटी सी झोपड़ी बना देनी चाहिए। क्योंकि वह निंदक बिना पानी और साबुन के ही आपके मन, विचार और स्वभाव को साफ कर देता है। उसकी आलोचना से आप अपने अंदर की कमियो को जान सकते है और उन्हें सुधार सकते हैं।
सारांश:
निंदक (आलोचक) हमारे लिए फायदेमंद होता है क्योंकि वह हमें हमारे दोषों से परिचित कराता है, जिससे हम अपने व्यक्तित्व को बेहतर बना सकते हैं।

दोहा – 19
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।।
अर्थ – यह दोहा संत कबीरदास जी का है, जिसका हिंदी में अर्थ है:
“साधु (अथवा सज्जन व्यक्ति)को उस सूप के समान होना चाहिए, जो सार अर्थात काम की चीज को अपने पास रखता है और जो थोथा अर्थात बेकार, व्यर्थ चीजों को उड़ा देता है।”
विस्तार में अर्थ:
जैसे सूप अनाज को फटक कर काम की चीज अर्थात अनाज को अपने पास रख लेता है और भूसी को उड़ा देता है, वैसे ही एक अच्छे इंसान या संत को भी चाहिए कि वह समाज से अच्छाई को ग्रहण करे और बुराई को दूर करे।
संदेश:
“हमें लोगों की बातों, व्यवहार या समाज में से अच्छाई को अपनाना चाहिए और बुराई को त्याग देना चाहिए। बिना मतलब की बातों में उलझना नहीं चाहिए।“
दोहा – 20
जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय।
काया माया मन तजै, चौड़े रहा बजाय।।
अर्थ – जब तक शरीर में इच्छा (आस) बनी रहती है, तब तक व्यक्ति वास्तव में मरा नहीं माना जाता।
अगर कोई व्यक्ति शरीर, माया (संसार की मोह-माया) और मन को त्याग भी दे, फिर भी अगर उसमें इच्छा बाकी है, तो वह मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता – वह सिर्फ दिखावे के लिए संसार से अलग हुआ है।
भावार्थ:
सच्चा वैराग्य (त्याग) वही है जब मन की इच्छाएँ भी समाप्त हो जाएँ। केवल शरीर और माया का त्याग करने से कुछ नहीं होता, जब तक मन में आसक्ति है, तब तक मोक्ष संभव नहीं।
Kabir Ke Dohe With Meaning (कबीरदास जी के दोहे अर्थ सहित)
कबीरदास जी के कुछ बेस्ट दोहे हमने नीचे लिखा है:
दोहा – 21
सुख में सुमिरन न किया, दु:ख में किया याद।
कह कबीरा ता दास की, कौन सुने फ़रियाद।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि सुख में तो भगवान को कभी याद नहीं किया और जब दुख आया तब भगवान् को याद करने लगे, कबीर दास जी कहते हैं की उस दास की प्रार्थना कौन सुनेगा ।
दोहा – 22
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घडा, ऋतू आए फल होए।।
अर्थ – कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ है-
हे मन! सब कुछ धीरे-धीरे ही होता है।”
भले ही माली किसी पौधे को सौ घड़े पानी सींच दे, तब भी फल तो मौसम आने पर लगेंगे।
व्याख्या:
इस दोहे में कबीर दास जी हमें धैर्य रखने की सीख देते है। वे कहते हैं कि कोई भी काम तुरंत नहीं होता। जैसे पेड़ पर फल आने में समय लगता है, वैसे ही जीवन में अच्छे परिणाम पाने के लिए समय और धैर्य जरूरी होता है। आप मेहनत करते रहो, लेकिन परिणाम के लिए उतावला मत हो, धैर्य रखो, सब कुछ अपने समय पर ही होता है।
दोहा – 23
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय।।
अर्थ – इस दोहे का हिंदी में अर्थ इस प्रकार है:
“माटी (मिट्टी) कुम्हार से कहती है — तू क्यों मुझे रौंद (कुचल) रहा है?
एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे रौंदूँगी।“
इस दोहे में गहन प्रतीकात्मक अर्थ छिपा है। कुम्हार जब मिट्टी को रौंदकर उसे घड़े या अन्य बर्तन का रूप देता है, तो मिट्टी यह कहती है कि तू आज भले ही मुझे रौंद रहा है, पर एक दिन ऐसा आएगा जब तू मेरी ही गोद में अर्थात मिट्टी में मिल जाएगा। मौत के बाद हर इंसान मिट्टी में ही मिल जाता है।
भावार्थ:
यह दोहा जीवन की क्षणभंगुरता और विनम्रता का संदेश देता है। कबीरदास जी कहना है कि खुद पर कभी अहंकार करना चाहिए, यह शरीर क्षणभंगुर है, चाहे कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंत में सबको मिट्टी में ही मिल जाना है। इसलिए किसी को नीचा दिखाने या उसका अपमान करने से पहले यह याद रखना चाहिए कि समय सबका आता है।

दोहा – 24
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जो लोग सच (सत्य, ज्ञान, या ईश्वर) की सच्ची खोज करना चाहते हैं, वे ही उसे पाते हैं क्योंकि वे गहरे अर्थात कठिनाइयों और संघर्षों में उतरने का साहस रखते हैं।
लेकिन मैं डरपोक हूँ, जो डूब जाने के डर से पानी में गया ही नहीं और किनारे पर ही बैठा रहा, इसलिए मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।
सन्देश:
“इस दोहे के द्वारा कबीरदास जी यह सन्देश देना चाहते है कि सच को जानने, ज्ञान या सफलता पाने के लिए जोखिम उठाना पड़ता है, साहस दिखाना पड़ता है। जो लोग डर के कारण कोई प्रयास ही नहीं करते, उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता।”
दोहा – 25
माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए।
हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय।।
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि जिस तरह मक्खी मीठे गुड़ में फँस जाती है और उसके पंख गुड़ में चिपक जाते हैं, जिससे वह उड़ नहीं पाती, ठीक उसी तरह लालची व्यक्ति भी लालच के चक्कर में फँस जाते है। बाद में वह हाथ मलता है, सिर धुनता है अर्थात अफसोस करता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
सन्देश:
“इस दोहे के द्वारा कबीरदास जी यह सन्देश देना चाहते है कि लालच करना बुरी बात है। यह इंसान को परेशानी में डाल देता है और फिर पछताना पड़ता है।“
दोहा – 26
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार।
सतगरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि तीर्थ यात्रा करने से एक पुण्य (फल) मिलता है और अगर किसी सच्चे संत का सान्निध्य अर्थात संग मिलता है तो उससे चार गुना पुण्य प्राप्त होता है। लेकिन यदि किसी सतगुरु (सच्चे मार्गदर्शक गुरु) की प्राप्ति हो जाए, तो अनगिनत पुण्य और लाभ प्राप्त होते हैं।
सन्देश:
“कबीर इस दोहे के माध्यम से यह संदेश दे रहे हैं कि बाहरी तीर्थ यात्राओं से कम पुण्य मिलता है, लेकिन अगर हमे संतों और विशेष रूप से सतगुरु का संग मिलता है, क्योंकि वे हमे आत्मज्ञान और ईश्वर की राह का मार्गदर्शन करते है।”
दोहा – 27
राम रहे वन भीतरे, गुरु की पूजी न आस।
कहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जो लोग गुरु की पूजा नहीं करते वो उनके सीख के बिना भगवान् को कभी प्राप्त ही नहीं कर सकते। ऐसे लोग भगवान् को अपने अंतरमन में न ढूढ़कर, यह सोचते है कि भगवान् को वन में प्राप्त किया जा सकता है क्यूकि भगवान् राम तो वन में रहते है, लेकिन भगवान तो हमारे अंदर ही रहते है। जो लोग भगवान् को बाहर ढूढ़ते है, ऐसे पाखंडी झूठे लोगो को भगवान की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती। उन्हें हमेशा निराशा ही मिलेगी।
दोहा – 28
कबीरा खड़ा बजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि कबीर जी बाजार में खड़े हैं और भगवान् से सभी के भले की इच्छा करते हैं। वह न तो किसी से दोस्ती करना चाहते हैं, न ही किसी के साथ बैर की भावना रखते हैं।
संदेश:
इंसान को अपने दिल में किसी के प्रति द्वेष या तिरस्कार की भावना नहीं रखनी चाहिए, बल्कि सभी के साथ अच्छाई की भावना रखनी चाहिए। कबीर जी ने यह कहा है कि मनुष्य को निष्कलंक और निष्पक्ष होना चाहिए, और किसी के साथ किसी भी प्रकार का पक्षपात जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए।

दोहा – 29
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय।
रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय।।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है कि जिसने अपने मोक्ष रूपी घर को प्राप्त कर लिया है, ऐसे संत भक्त के शरीर छोड़ने पर क्यों रोते है। रोना है तो उन बेचारे अभक्त अज्ञानियों के मरने पर रोओ, जो मरकर फिर से 84 लाख योनियों के बाजार में बिकने जा रहे है।
दोहा – 30
मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास।
साधु तहाँ लौ भय करे, जौ लौं पिंजर सांस।।
अर्थ – “मनुष्य ने मरणासन्न अवस्था को देखकर, अपने मन में विश्वास और समझ विकसित किया। जैसे ही साधु व्यक्ति (जो संन्यासी या योगी होता है) मृत्यु के समीप आता है, वह सांसों के पिंजरे (शरीर) में बंद होकर, जीवन के अंत को देखता है।”
सन्देश:
यह दोहा जीवन और मृत्यु के परिपेक्ष्य में इंसान के आत्मनिर्भरता, साधना और विश्वास को दर्शाता है। इस दोहे का मतलब है कि इंसान को मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करते हुए, जीवन में आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए।
Kabir Das Thoughts in Hindi (कबीर के विचार)
कबीरदास जी के विचार निम्नलिखित है:
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख हो निहाल।
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूं न ग्रासै काल।।
अर्थ – “जो व्यक्ति अपने शब्दों का सही विचार करके बोलता है, वह गुरुमुख (गुरु के मार्ग पर चलने वाला) होकर निहाल (आध्यात्मिक सुखी) हो जाता है। काम (इच्छाएं) और क्रोध (गुस्सा) उसे प्रभावित नहीं करते, और वह कभी भी काल (मृत्यु) के द्वारा नहीं पकड़ा जाता।”
संदेश:
जो व्यक्ति अपने शब्दों का ध्यानपूर्वक उपयोग करता है और गुरु के मार्ग पर चलता है, उसे जीवन में शांति और मोक्ष मिलता है, और वह भौतिक और मानसिक द्वंद्वों से मुक्त रहता है।
मै जानूँ मन मरि गया, मर के हुआ भूत।
मूए पीछे उठी लगा, ऐसा मेरा पूत।।
अर्थ: इस दोहे का हिंदी में अर्थ है:
“मैं समझा कि मेरा मन मर गया है, और मरकर वह भूत बन गया है। मरा हुआ मन फिर से उठ खड़ा हुआ, ऐसा जिद्दी और अजीब मेरे पुत्र समान मेरा मन है।”
भावार्थ:
कबीर कहते हैं कि उन्होंने सोचा था कि उनका मन अब वासनाओं, इच्छाओं और मोह से मुक्त होकर “मर गया” है। लेकिन वह फिर से सक्रिय हो गया – जैसे कोई मरा हुआ भूत बनकर वापस आ जाए। कबीरदास मन को अपने पुत्र जैसा बताते हैं। जैसे पुत्र अपने पिता के प्रति चंचल, हठी और बार-बार भ्रमित करने वाला होता है वैसे ही हमारा मन होता है।
यह दोहा मन की चंचलता और साधना की राह में आने वाली कठिनाइयों को दर्शाता है।
मै मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ।
जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ।।
अर्थ – इसका अर्थ इस प्रकार है:
“मैंने अपना घर अर्थात अहम, मोह, लोभ रूपी घर जला डाला है, और हाथ में पलीता (ज्वाला फैलाने वाला बत्ती) ले लिया है। जो भी अपना घर अर्थात अहम, मोह, लोभ रूपी घर जलाने को तैयार हो, वे हमारे साथ चलें।”
भावार्थ:
कबीर कहते हैं कि उन्होंने अपने अहंकार, मोह, माया, और सांसारिक बंधनों से बने “घर” को ज्ञान की प्रकाश से जला दिया है। यानी उन्होंने आत्मिक मुक्ति की राह पकड़ ली है। वे हाथ में “पलीता” लिए हुए हैं, ताकि दूसरों इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सके। वे कहते हैं, जो भी अपने अंदर के अज्ञान और बंधनों को त्यागने को तैयार है, वह उनके साथ चले।
यह दोहा वैराग्य, आत्मज्ञान, और संसार से मुक्ति की प्रेरणा देता है।
Kabir Ke Vichar
कबीरदास जी के कुछ विचार हमने निचे लिखा हुआ है-
उजला कपड़ा पहनि करि, पान सुपारी खाहि।
एकै हरि के नाम बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं।।
अर्थ – यह दोहा संत कबीर दास की रचना है।
अर्थ:
“साफ-सुथरे कपड़े पहनकर, पान-सुपारी खाकर (बाहरी आडंबर करके) कुछ नहीं होता। जो इंसान ईश्वर का नाम नहीं लेता अर्थात स्मरण नहीं करता, वह यमलोक (नरक) को ही जाता हैं।”
भावार्थ:
कबीरदस जी इस दोहे में बाहरी दिखावे का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि केवल कपड़े साफ रखने और शारीरिक सजावट करने से कुछ नहीं होगा, यदि मन शुद्ध नहीं है और भगवान का नाम नहीं लिया गया, तो आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी। ईश्वर का स्मरण और भक्ति ही मोक्ष प्राप्ति के लिए असली साधना है, बाहरी दिखावा नहीं।

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए।।
यह दोहा संत कबीर दास की रचना है।
अर्थ:
“हे प्रभु! मुझे इतना ही दीजिए जिसमें मेरा परिवार ठीक से समा जाए। मैं खुद भी भूखा न रहूँ, और कोई साधु (अतिथि, जरूरतमंद) भी मेरे द्वार से भूखा न लौटे।”
भावार्थ:
कबीर इस दोहे में संतुलित जीवन की सीख देते हैं। वे न अधिक धन की कामना करते हैं, न अत्यंत गरीबी की। वे सिर्फ इतनी प्रार्थना करते हैं कि उनका जीवन सरल और संतोषपूर्ण हो, जिसमें न केवल उनका परिवार निर्वाह कर सके, बल्कि कोई अतिथि या जरूरतमंद भी आ जाए तो उसकी सेवा हो सके।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
यह दोहा संत कबीर दास की रचना है।
अर्थ:
“संत की जाति मत पूछो, बल्कि उसका ज्ञान पूछो। मोल तो तलवार का होता है, उसकी म्यान (कवर) का नहीं।”
भावार्थ:
कबीर कहते हैं कि किसी संत या ज्ञानी व्यक्ति की जाति, वंश या बाहरी पहचान महत्वहीन है। असली मूल्य तो उसके ज्ञान, आचरण और आत्मिक स्तर का होता है। जैसे तलवार की कीमत होती है, उसकी म्यान (ढक्कन) की नहीं। यह दोहा समाज में व्याप्त जात-पात और भेदभाव पर तीखा प्रहार करता है।
कबीर की यह वाणी आज भी सामाजिक समानता और मानवीय मूल्यों की प्रेरणा देती है।
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय।
रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय।।
अर्थ – इस शेर का अर्थ है:
कबीर कहते हैं कि सच्चा भक्त जब मरता है, तो दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि उसकी आत्मा तो परमात्मा में लीन हो रही है, अर्थात अपने असली घर लौट रही है, इसलिए भक्त की मृत्यु पर शोक नहीं, बल्कि आनंद होना चाहिए। लेकिन जो इंसान ईश्वर से विमुख है, भक्ति रहित है, वह संसार के मोह-माया में बिकता रहता है, अपने जीवन का मूल्य खो देता है, ऐसे व्यक्ति के लिए वास्तव में शोक करना चाहिए।
एक सच्चा भक्त मृत्यु के बाद भगवान के पास जाता है, इसलिए उसे शोकित होने की आवश्यकता नहीं है। वहीं जो लोग बुरे होते हैं, वे सांसारिक मोह-माया में फंसे रहते हैं और उनका जीवन निरर्थक हो जाता है।
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
कहलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।।
अर्थ- कबीरदास इस दोहे के माध्यम से कहते है कि हे मनुष्यो! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है। देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है जो कुछ उसके मुँह में है और कुछ उसके गोद में है।

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